15 अप्रैल 2014

फुटकर बकवास.

वो जब सामने होती है 
मैं, निरीह सा,  छुप जाता हूँ.
धूप छाँव का अजीब खेला
ऐसे ही जीवन पर्यंत चलता रहा

*        *        * 

ईश्वर ने मेरे लिए कुछ जरुरी नायाब उपहार भेजे
मैं सदा उसकी गठड़ी पर निगाह गढ़ाकर
थोडा अक्षत पुष्प मीठा चढ़ाकर
और भी बहुत कुछ मांगता रहा.

*        *        * 

शट डाउन और री-स्टार्ट के बीच छोटे से
अंतराल को समझ पाना कितना दूभर है.
ज्ञानीजन जीवन और मृत्यु  के बीच के अंतराल को समझते हैं.

*        *        *  

स्वजन के मरने पर रोते-प्रलाप करते हैं
और अगले ही दिन काम पर चले देते हैं.
जीवन का खेल कितना विचित्र है 
और मृत्यु कितनी आसान सी
ऐसा सभी जानते  हैं.
पर कितने मानते हैं.

1 टिप्पणी:

  1. यह बकवास नहीं जीवन की सच्चाई है।
    जिसका इतना सुन्दर वर्णन किया है आप ने। बहुत अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं

बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.