अरे भाई रे, नीचे से उपर आते आते इतने कागज के
बंडल दिखे – मुझे तो घबराहट होने लगी,– ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी कागज की
फेक्ट्री में आ गया हूँ, वैसे आप क्या छापते हैं,
सफ़ेद बाल मोटा चश्मा और उम्र लगभग ७०-७२ साल, प्रश्न के साथ मुस्कुराहट थी,
मैंने टेबल से टिफिन एक किनारे किया कि पहले इस
महानुभव से निपटा जाए भोजन थोड़ी देर बाद लेंगे.
कहिये अंकलजी (अंकलजी - दिल्ली में किसी भी अजनबी
के लिए प्रचलित शब्द) आप कहाँ से और कैसे आना हुआ.
उसने उल्टा मेरा ही नाम पूछ लिया,
आनंद सभी एक ही जगह से आते है, पानी पिलाओ. आदेश के साथ बुड्डे ने कुर्सी कब्जियाई. मैंने पानी का
गिलास उसके सामने कर दिया.
उसके बाद प्रेस और छपने वाले जॉब के विषय में बताया.
समय हो गया था कर्मचारियों के लिए ३ बजे वाली चाय आ गयी...
अंकलजी ने चाय मना कर दी, बोले भोजन का समय है.
प्रिंटिंग से शुरू हुई बातें सामाजिक सरोकार और बच्चों के संस्कारों पर होने लगी ..
हाँ क्यों नहीं पर इसके लिए तुम्हे टिफिन खोलना
पड़ेगा. और वैसे भी तुम्हारी प्रेस से ज्यादा इस टिफिन में रखा खाना मुझे यहाँ तक
खींच लाया है.
उस टिफिन को अंकलजी के साथ शेयर करना पड़ा. थोड़ी देर बाद चाय का आदेश था.
हालांकि थोड़ी देर के लिए परेशान भी था कि एक अजनबी
बंदा कैसे भोजन भी कर बैठा और बेत्कुल्फ़ भी हो चुका है.
अंकल जी कहाँ रहते है,
इतनी बड़ी दुनिया है आनंद, किस किस से पूछोगे कि
कहाँ रहते हो ... फिर कुछ खीज से बोले ये अंकल अंकल क्या लगा रखा है, मेरा नाम जय
प्रकाश है – तुम्हे मेरा नाम पूछना चाहिए था, घर का पता पूछ रहे हो.
हँसते हुए बोले, मित्रों में जे पी नाम से जाना
जाता हूँ,
मैंने भी थोडा हंस कर बोला इमरजेंसी वाले जे पी
तो नहीं ...
सिगरेट जलाते हुए बोले... नहीं, मैंने कभी महान होने की ख्वाइश नहीं पाली.
दो कश लेने के बाद बोले कि तुम्हे सिगरेट के
धुंवे से कोई परेशानी तो नहीं. गर हो तो ऑफिस का एक्स्जोस्ट् चला दो ..
दो कप चाय, मेरा आधा टिफिन और दो-ढाई घंटे स्वाह
करने के बाद बिना किसी बिजनेस डीलिंग के ‘जे पी’ नामित विचित्र जीव चलने के लिए उठे
जे पी, अपना
मोबाइल नम्बर तो देते जाइए, कभी बात करेंगे.
छोडो, नम्बर में क्या रखा है, वैसे भी मैं मोबाइल
नहीं रखता ... और घर नम्बर देना नहीं चाहता क्योंकि घर में कम ही मिलता हूँ. हाँ बात मिलने की रही तो जरूर मिलते रहेंगे.
जे पी के जाने के बाद मैं काफी देर तक उसके बारे
में सोचता रहा, बंदा किसी अच्छी पोस्ट से रिटायर्ड लग रहा था, पता नहीं इस
कम्प्लेक्स में किससे मिलने आया था, इसके बच्चे इसके साथ रहते हैं या नहीं, इसकी
पत्नी अभी तक जीवित है या नहीं.
छोडो... आदत के मुताबिक रंग बिरंगी दुनिया का एक फूल समझकर मैं भूल गया.
* * * *
* *
डेढ़ एक साल बाद किसी मंगलवार को कनाट प्लेस के हनुमान
मंदिर के बाहर उनसे फिर मुलाकात हुई.
जे पी क्या आपने हनुमान जी के दर्शन कर लिए या अभी मेरे साथ ही चलोगे..
जे पी क्या आपने हनुमान जी के दर्शन कर लिए या अभी मेरे साथ ही चलोगे..
मैं तो हनुमान के भक्तों से मिलने आता हूँ, हनुमान
जी क्या मिलना, तुम मथा टेक आओ फिर बातें होंगी.
जब मैं दर्शन कर के आया तो जे पी बाहर जूते रखने
वाले के पास बैठे उससे बातें कर रहे थे, मुझे देख कर उठ खड़े हुए और बोले चलो कचोरी
और चाय का प्रोग्राम बनाओ. फिर वही संस्कारविहीन बच्चों और दिशाहीन युवा पीढ़ी और समाज पर बातें
होती रही.
चलने लगा तो जे पी बोले मुझे राजेन्द्र नगर तक छोड
देना.
मैंने मजाक में कहा राजेन्द्र नगर क्या मैं हरिद्वार
तक तुम्हारी गारंटी ले सकता हूँ, पर उसके बाद मेरा पीछा छोड़
देना...
अरे नहीं, हरिद्वार तक की परेशानी किसी को नहीं होने दूँगा.
राजेन्द्र नगर जब मैंने स्कूटर रोका तो सोचा आज
चांस है इस बुड्डे का घर देख लिया जाए... पता तो चले घर में कौन कौन है.
जे पी घर तक ड्रॉप कर दूँ क्या,
नहीं मेरा घर यहाँ नहीं है, बस किसी से मिलना था.
ओह, मैं राम राम कर के प्रेस में आ गया.
* * * *
* *
५-६ महीने बाद की बात है, जे पी से जल्दी मुलाकात हुई
लंच के समय रस्तोगीजी आ धमके. अमां, क्या रोज घर
की वही ठंडी दाल रोटी खाते रहोगे, चलो आज अग्रवाल कार्नर में लंच करेंगे.
मैं और रस्तोगी जब अग्रवाल कोर्नर पर पहुंचे तो
आश्चर्यजनक रूप से जे पी बाहर ही मिल गया.
हालचाल पूछने के बाद बोले आज मैं अपनी ओर से तुम
दोनों को साम्भर डोसा खिलायुगा
अंकलजी हम उसके बाद मीठा भी खायेंगे – रस्तोगी जी
बोले.
जरूर पर मेरा नाम जे पी है, अंकलजी नहीं
रस्तोगी जैसा बन्दा साथ था तो हंसी मजाक भी काफी देर तक चलता रहा
रसगुल्लों के बाद चाय भी आयी. और जब बिल मैंने
देना चाह तो जे पी ने नाराज़गी दिखाई.
रस्तोगी ने सोचा कोई रिश्तेदार होगा. जब उसे पता
चला कि वैसे ही परिचय हुआ है तो वो टोंट कसता हुआ बोला, जे पी साहेब, ये साला इस
मुग्लाते में हमेशा बुड्डों से दोस्ती गांठता है, कि कोई अपना वसीयतनामा इसके नाम
कर देगा.
जे पी जी भर के हँसा, बोला अगर ये यही सोचता है
तो ईश्वर इसकी आशा पूरी करे, मगर मैं चाहता हूँ कि दुनिया में हर आभागे को अपने
भाग का मिले.
फिर वेटर को मय टिप बिल चुकाने के बाद मुझे एक
नम्बर देते हुए जे पी ने कहा कि ये मेरा मोबाइल नो. है पर फोन कभी मत करना. वैसे
भी तुम्हे इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
* * * *
* *
मेरी आदत है कि सप्ताह में एक बार जेब खाली करके
सारी पर्चियां कागज़ का निपटान करता हूँ, और जिनकी आवश्यकता नहीं रहती वो सब एक
दराज़ में फैंक देता हूँ – शायद कभी जरूरत पड़े, और ३-४ साल बाद की किसी दिवाली पर
उस दराज़ की भी सफाई होती है. ऐसे ही ३-४ साल बाद दिवाली पर उस दराज़ की सफाई कर रहा
था, बिना काम की पर्चियां फाड़ फाड़ कर फैंक रहा था.
अचानक एक पर्ची दिखी J P 99XXXXXXX
हाँ जे पी, मैं भूल गया
था उसे. सही कहा था उसने क्या जरूरत है नम्बर की. आज का युवा बिना मतलब फोन बस
अपनी गर्ल फ्रेंड को ही करता है.
सोचा चलो दिवाली की
शुभकामनाएँ देता हूँ, बुड्डा खुश हो जाएगा.
फोन पर एक सख्त आवाज़ में
हैलो.. सुना तो मैं थोड़ी देर के लिए खामोश रहा फिर मैंने कहा, क्या जे पी से बात
हो सकती है,
कौन जे पी,
जी, जय प्रकाश.
ये नम्बर तुम्हे किसने
दिया था,
खुद उन्ही ने कहाँ है वो....
पिछले दो वर्ष से पता
नहीं कहाँ है, समाज को कुछ ज्यादा ही सामाजिक करना चाहता था.
जी आप उनके कौन है, क्या
उनके बेटे से बात ....
इससे पहले की मैं बात
पूरी करता , वहाँ फोन डिस्कनेक्ट हो चुका था.
की आवाज़ में
रेडियो प्लेबैक इंडिया
पर ये कहानी.
सुनिएअनुराग शर्मा जी
की आवाज़ में
रेडियो प्लेबैक इंडिया
पर ये कहानी.
धन्यवाद अनुराग जी, न आपने केवल इस कहानी को आवाज़ दी अपितु उसका जो संपादन किया वो भी अच्छा लगा. एक बार फिर धन्यवाद.
इक लापता का पता ढूंढते हो ... रोचक कहानी!
जवाब देंहटाएंसतीश सक्सेना
जवाब देंहटाएंसतीश सक्सेना ने आपकी पोस्ट " जय प्रकाश उर्फ जे पी " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बढ़िया है ...
अगली बार तुमसे मिलने मैं आऊँगा टिफिन डबल लाना न भूलना !
एक बुड्ढा और सही बाबा झेल लो ...
क्या पता कब लाटरी लग जाए !
कुछ ज्यादा ही सामाजिक...... :(
जवाब देंहटाएंसमाज को कुछ ज्यादा ही सामाजिक करना चाहता था.
जवाब देंहटाएं:-(
रोचक प्रस्तुतीकरण ... अंत रहस्यमयी ही रह गया ।
जवाब देंहटाएंकम से कम रहस्य से पर्दा तो उठा देते बाबा :(
जवाब देंहटाएंदुनिया अजब सरायफ़ानी..
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंऐसा लग रहा है कि यह कहानी पहले भी पढ़ी है। आपने इसे पहले भी लिखा था क्या? लेकिन रोचक है। ऐसे अबुझ लोग मिल ही जाते हैं कभी-कभी जीवन में।
जवाब देंहटाएंjai baba banaras...
जवाब देंहटाएंदीपक बाबा, हमने आपकी इस खूबसूरत कहानी को आवाज़ देने की कोशिश की है, रेडियो प्लेबैक इंडिया पर
जवाब देंहटाएंआभार अनुराग जी, आपने न केवल इस कहानी को आवाज़ दी अपितु उसका जो संपादन किया वो भी अच्छा लगा. एक बार फिर धन्यवाद.
हटाएं:) बहुत कुछ सिखने को मिला
जवाब देंहटाएंरोचक कहानी!
जवाब देंहटाएंदुनिया के अजायबघर में कैसे -कैसे कैरेक्टर्स मिल जाते हैं - रोचक शैली !
जवाब देंहटाएंवाह लाजवाब प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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