15 अक्तू॰ 2010

भाई तू खत्री है ......... अपने धर्म का पालन कर .... प्रेस संभाल....

     प्रिये मित्र है – रवि रस्तोगी......... उनकी भी प्रेस है – हमरे बगल में ही.  आते है तो वातावरण को उत्साहित कर देते है – बेबाक बोलते हैं : शब्द-अपशब्द सभी कुछ. आज आ धमके ...... बाबा चाय मंगवाओ......

 हम शरद कोकास जी के ब्लॉग पर लिखी विम्मी जी की कविता का पाठ आरंभ कर देते हैं – उनको सुनाने के लिए................. पर आज रस्तोगी जी दूसरे मूड में है.  उवाचने लगते हैं. :

भाई तू खत्री है ......... अपने धर्म का पालन कर .... प्रेस संभाल..........
क्या इन झा, मिश्र, पाण्डेय के चक्कर में रोजगार खराब कर रहा है....
इनको तो बातों का खाना .......
तू तो फरमा छाप और चालान बना.......
परचा बना और तक्काज़ा कर.......
कविता मत सोच......... न कविता टाइप कर.......
जिस का पैसा मिले वही टाइप कर......
जिस का पैसा मिले वही छाप
काहे इन कवि खावि के चक्कर में क्यों अपना दिमाग खराब करते हो.

एक बार मुझे घूर कर रस्तोगी जी फिर बोलते हैं:
इ चिट्ठे-विट्ठे कहीं रोटी थोड़े ही देते हैं.........
ई तो बस टेम खोटी करने का जरिया है..........
काहे फ़ालतू चिटठा जगत खोल कर बैठा है......
कोइऊ कुछ भी लिखे ...... तुम्हे का.....
कोइऊ कुछ भी टिप्पियाए तुम्हे का.

काहे तडके तडके – दिमाग दही कर के इहाँ बैठ जाते हो......
जाब छापो.....
डिलिवेरी करो....
परचा बनाओ.........
आगे पहुंचाओ........
और वसूली करो...
इससे ज्यादा मत सोचो......

बस
इससे जयादा सोचोगे....................
तो बर्बाद कर देंगे ई सब मिल कर....

कोनों रोटी पूंछने नहीं आएगा..........
विश्वास नहीं तो पूछे लो.. एक आधे को मेल कर के....
एको टेम खिला भी दें तो.......
दूर रहो...
इस सब ब्लोगर जात से...........
कोनों नहीं आवेगा........

ई सब यू पी – बिहार वालों का मौज है.............
धान बहुत है....
खाने को भी
और बेचने को भी.......
तुम्हरा का है........
ले दे के एगो प्रेस है.........
एका चलाओ .....
और मौज काटो.

तुम्हो कोई कवि लेखक-शेकक तो हो नहीं..........
नाही कोई दाडी वाला बदनाम शायर हो...........
ना ही कोई बड़ी-बड़ी बात कर
    कोट पैंट पहिन कर ऐ सी कमरे में
    कैमरे के आगे बोलने वाला...........

तुम्हो एक छापक हो .......
जो दुनिया की बक बक छापता है.....
और बिना टिपण्णी दिए......
पैसा लेता है........
ओऊ काम करो न.....


रस्तोगी जी दिमाग जागरण का काम कर रहे हैं – चाय कि चुस्कियों के साथ. हो हम मज़े मज़े से टाइप किये जा रहे हैं. जब पोस्ट कर दूंगा ..... उनको फिर पढ़ने के लिए कहूँगा.

........... आप क्या कहते हैं......
जय राम जी की.


6 टिप्‍पणियां:

  1. किसी भी चीज के प्रति अत्यधिक लगाव बेशक ख़राब कहा जा सकता है लेकिन संतुलित लगाव वो भी ब्लोगिंग के प्रति कभी भी सिवाय फायदे के नुकसान तो कभी पहुंचा ही नहीं सकता ..वैसे कुछ चीजें ऐसी है जिसके साथ अत्यधिक लगाव ही असल जिन्दगी का स्वाद देती है जैसे परोपकार,सत्य,न्याय और ईमानदारी ..काश हमसब इस बेहद खतरनाक लेकिन फायदेमंद चीजों से अपना गंभीर संवाद जोड़ पाने में सफल हो पाते....

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  2. bhai deepak ji
    bahut hi sunder uvach hai.
    तुम्हो एक छापक हो .......
    जो दुनिया की बक बक छापता है.....
    और बिना टिपण्णी दिए......
    पैसा लेता है........
    ओऊ काम करो न.....

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  3. Deepak sir,
    pahle to aapke bak-bak ki mai dad dunga..sahi me maza aa gaya aapke blog par aate hin..aapko jaan kar bahut aanand aayega ki aapke rashtogi jee jaise kai rashtogi jee hamare ird gird bhi mauzood hay..jo samay samay par aisehin aaina dikhlate rahte hay..aur ham likhandar unki baat ko bhi likhne se nahi chukte...ab unhe ka pata ki hame kaun sa rog laga hay..chaliye achchha hay ki rashtogi jee aapka fikr karte hay..aap unhe mera NMASKAR zarur kahiyega.

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  4. यथार्थ का दर्शन जब भी जिस भी रूप मे होता है मन पल भर को ठिठक कर सोचने लगता है.
    एक सार्थक प्रस्तुति !

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  5. बिना टिपण्णी दिए......
    पैसा लेता है..Kya tippnee ker ke paisa kamaya jata hai?

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.