30 सित॰ 2010

अजोध्या का फैसला - जय हो टर्कोलाजी

अरे भोलानाथ, बहुते दिन बाद नज़र आये.
का बताएं बाबा, ई टर्कोलाजी से फुर्सत मिले तो आपके पास आकर बैठे और बतलाये.
भोलानाथ, ‘टर्कोलाजी’ कहाँ से पकड़ लाये.
बाबा, हर घर-परिवार से लेकर पुरे देश में ही टर्कोलाजी चल रही है – कुछ चला रहे हैं – कुछ झेल रहे हैं.
भाई भोलानाथ – ई तो नई चीज़ बता दी तुमने, अभी तक तो हमो ई समझे बैठे थे की घर से लेकर पूरा देश – देसी जुगाड नामक यंत्र से चल रहा है. ई सुसरी ‘टर्कोलाजी’ कहाँ से आ गयी.
बाबा, देखो जमाना बदल गया है – लोग बदले साथ में नई नई टेक्नीक आये है. ई समझ लो टर्कोलाजी भी नई टेक्नोलोजी है.
उ का है न बाबा का दिमाग पुराने मॉडल का है – हो ई दम लगवा और तनिक विस्तार से बतावा.
देखो, घर में हमार मेहरारू नए साडी मागत रही – पिछले कातिक से, हमने समझाया – बैसाख में ले देंगे, फिर बताया – आशाद में फिर टालते-टालते बोले कि चलो इस दिवाली पर ले देंगे. बनिया बहुत तकाज़ा कर रहा था – पैसे के लिए. हम बोले इस धान कि कटाई पर दे देंगे फिर अरहर कि फसल का वयदा किया – टर्कोलाजी से सभे काम टकाटक चल रहे हैं.
पिच्छले तीन साल से अपनी अम्मा कि वृद्ध पेंशन के लिए चक्कर काट रहा हूँ – सरकार दफ्तर में और आशा बनी हुई है – इक्कठा पैसा आएगा. टर्कोलाजी यहाँ भी चल रही – उम्मीद कायम है.
पर saal बाड़ आयी थी,– मुख्यमंत्री राहत कोष से बाड़-पीड़ित में हमरा भी नाम था. उ पैसा के लिए बैंक में चक्कर काट रहा हूँ – सरकार का पैसा है जरूर मिलेगा पर वहाँ से मिली टर्कोलाजी कि बदोलत दिन कटते रहते हैं.
ई है तुम्हरी टर्कोलाजी ? अब बतावा देश कैसे चल रहा है टर्कोलाजी से.
अरे बाबा, देश चल नहीं रहा विकास कर रहा है. अब देखा ई खेल हो रहे है राजधानी में. उ ७ साल पहले हरी झंडी पा ली. पर ई टर्कोलाजी वहाँ भी चली. जब देखा समय पूरा हो गया. अब पैसा बनाने का पूरा चांस आ गया और टर्कोलाजी खत्म और काम चालू.
ई जो अजोध्या का फैसला है ई भी टर्कोलाजी पर चल रहा. हर सरकार टालना चाहती है और पिछले ६० साल में इत्ती सरकार आयी गयी – अपनी गाँधी जी का पार्टी, मजदूर वाले नेता का, खाकी निक्कर वाले का, तीसरी नस्ल वाली पार्टी का, .......... सभी ने टर्कोलाजी कि निति अपनाये रही.
हाँ, भोलानाथ पर ई मामला तो कोर्ट में है, अभी १-२ घंटे में फैसला आना है –
अरे बाबा, का फैसला आएगा, मामला कोर्ट में कैसे गया – का ई मामला कोर्ट का है? ई सभ टर्कोलाजी का ही एक हिस्सा है. अबे देख लेना कोर्ट भी यही टर्कोलाजी वाली निति अपनाएगी.
अच्छा, भोलानाथ – तुम तो बड़े ग्यानी हो कर दरशन बघार रहे हो.
हां, बाबा, आप देखते रहिये. एको बाबा बैठा था गद्दी पर –सुफेद दाडी वाला.
कौन, चंद्रशेखर –
हाँ, बाबा, उ सरकार इस मुद्दे पर बहुते कोसिस किये, पर हमरा गाँधी वाली पार्टी बिचारे की टांग खींच लिए – नहीं तो मामला निपटा देता. बस यहीं मार खा गए - सुफेद दाडी वाले. उनको ई टर्कोलाजी वाली निति नहीं आयी. मार खा गए.
बाबा तुमने तो कह दी मामला कोर्ट का है. चलो कोर्ट ने फैसला दे भी दिया तो का हो. काम तो दिल्ली वाले ही करेंगे. कोर्ट ने फैसला दिया था – अफजल गुरु को फांसी दो. टर्कोलाजी कि बदोलत आज तक फांसी नहीं हुई. कित्ते साल हो गए. उस सुसरा अगर जेल में न होता सायद मर गया होता – पर का है न कि उन्ह जेल में अच्छा खाना – अच्छा इलाज़ और का चाहिए एक उग्रवादी को? उके भाग जाग गए

ठीक बोले भोलानाथ जय हो टर्कोलाजी

7 टिप्‍पणियां:

  1. टिपण्णी - टिप्पणी
    ठीक कर दीजिए।
    अभी का निर्णय तो पहला कदम है। वीरप्पा मोइली ने कहा है।

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  2. टरकाओगे...टरकालो...हम टरक टरक कर भी तुम्हारे दर पे आयेंगे...

    नीरज

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  3. बाबा जी जय राम जी की
    बहुत अच्छा लिखा है आगे भी लिखते रहिएगा। अब मुझे हर रोज आपका ब्लाग पढना होगा, तभी शांति मिलेगी।

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  4. खूब गाण्डीवंधारी व्यंग्य कसा है .. ठीक निशाने पर तीर .. अभी अभी एक पंक्ति पढकर आया हूँ "मिर्ची की खीर" सच ही अपना देश तो मिर्ची की खीर खाते खाते टरकारीस्तान हो गया है ..

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  5. गिरीश जी, अभी टिप्पणी को ठीक किये देते हैं.. आभार सुझाव के लिए.

    संजय जी, "बाबा टरकाऊनाथ" बाबा हर जगह मोजूद हैं - आसपास निगाह तो डालिए.

    नीरज जी, आपकी येही अदा तो घायल कर जाती है.

    वीरू भाई, सही फ़रमाया आपने.

    अरे अतुल जी, यहाँ कहाँ शान्ति को ले आये.

    श्याम जी, आपने भी ने शब्द रच दिया टरकारीस्तान

    आप सब का आभार.

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.